Saturday, July 14, 2007

हाय अमेरिका !

अमेरिका मे विश्व हिंदी सम्मेलन हो रहा है , हिंदी के दिग्गज लोग गये ही नही ये देख कर मन बड़ा ही दुःखी है । अमेरिका जाने का सुनहरा मौका था, कौन रोज रोज जाने को मिलता है। अपने खर्चे से जाना मुश्किल ही है ,कोई बेटा- बेटी बस गए हो तो बात ही अलग है। नामवर जी, राजेंद्र यादव व मंगलेश जी आदि कई लोग नही गए , इसका बड़ा कष्ट है ।

अब बताइए राजेंद्र जी क्यों नही गए ,एक अच्छा मौका था वहाँ जा कर अपने विचारों को प्रस्तुत करने का , कुछ वर्ष अरुंधती राय गई थी अपने धांसू भाषण से अमेरिकी साम्राज्यवाद को चुनौती दी थी, क्या राजेंद्र जी वहीँ काम और जोरदार तरीके से नही कर सकते थे ? इसे अमेरिका वालों का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि राजेंद्र जी वहाँ नही गए , अमेरिका साम्राज्यवादी देश है इसलिये उसे नरेन्द्र मोदी के खाते में डाल दिया जाय ये तो अमेरिका के लोगों के साथ बड़ा ही अन्याय है। ये कोई बात नही हुई कि मार्क्सवादी हैं इसलिये अमेरिका नही नही जायेंगे । अरे गए रहते घूम घाम कर आये रहते कोई बोलता तो भारतीयों की परम्परा का उदहारण दे देते जो कि एक खोजने पर हजार मिलेंगी । ये भी कह सकते थे कि घृणा पाप से करना चाहिऐ ना कि पापी से ,गाँधी जी ने कहा है, मार्क्स ने भी कोई क़सम तो खिलाई नही है। एतिहासिक मौका चुक गए गुरू लोग।

नामवर जी भी नही गए । मुरारी बापू के चैनल पर मीरा बाई पर प्रवचन देने गए थे तो कुछ उम्मीद जगी थी कि मार्क्सवाद की शायद भारतीय संदर्भों मे नयी व्याख्या सुनने को मिले ,सौभाग्य से उसी समय पंत और कूडा वाला मामला कोर्ट मे चला गया जिससे देश के ऊपर (खासकर बनारस) फासीवाद का खतरा दिखने लगा था तो मुझे कुछ उम्मीद हुई कि नामवर जी की वैचारिक अगुवाई मे कोई क्रान्ति जैसी चीज होने वाली है , मगर अब तो उम्मीदें झुरा गयीं । अगर नामवर जी अमेरिका जाते तो अवश्य ही कोई जोरदार स्थापना देते , राजेंद्र जी तड़ से उसे काटते , फिर सारे अमेरिका ,और पुरेविश्व मे एक नयी बहस छिड़ जाती। लेकिन अब इन सब बातों पर अफ़सोस ही किया जा सकता है . ज्योति बाबु ने पी एम् ना बन कर जो गलती की, मुझे लगता है कि नामवर जी ने भी वैसी ही गलती की है ।

मंगलेश जी का तो फिर भी कुछ समझ मे आता है बेचारे सुब्रत राय के यहाँ " सहारा समय" मे नौकरी करते थे तभी ग्लानिबोध होता था , छाती पर पत्थर रख कर काम करते थे ( हालांकि नामवर जी भी वहीँ थे )। उससे मुक्ति मिली ही थी, अमेरिका जाना रिस्की था । अमेरिका जाने पर संभव था कोई कविता या कई कवितायेँ लिख देते , हो सकता है इन कविताओं का संग्रह "एक बार अमेरिका " प्रकाशित हो जाता फिर तो प्रगतिशील मित्र इसे सनद की तरह रखते और हमेशा कोंचते कि आप तो अमेरिका गये थे . सो उन्होने ठीक ही किया होगा .

लेकिन इस त्याग से इन लोगों को फायदा (सॉरी ) क्या होगा ? नामवर जी अब आशाराम बापू या बाबा रामदेव के यहाँ जायेंगे तो ऐसा थोड़े ही होगा की पंकज विष्ट " समयांतर " मे इसकी रिपोर्ट नही छापेंगे , कौशल गुरू भले ही अपना मुकदमा वापस ले लें ।