इन दिनों प्रभाष जोशी के का रविवार डॉट कॉम पर साक्षात्कार काफी विवादित रहा है ।उसके कुछ खास अंश है जिसे ब्राह्मणवादी विमर्श मन जा रहा है यहाँ दिया जा रहा है .
... क्योंकि ब्राह्मण अपनी ट्रेनिंग से अवव्यक्त चीजों को हैंडल करना बेहतर जानता है। क्योंकि वह ब्रह्म से संवाद कर रहा है। तो जो वायवीय चीजें होती हैं, जो स्थूल, सामने शारिरिक रूप में नहीं खड़ी है, जो अमूर्तन में काम करते हैं, जो आकाश में काम करते हैं. यानी चीजों को इमेजीन करके काम करते हैं. सामने जो उपस्थित है, वो नहीं करते. ब्राह्मणों की बचपन से ट्रेनिंग वही है, इसलिए वो अव्यक्त चीजों को, अभौतिक चीजों को, अयथार्थ चीजों को यथार्थ करने की कूव्वत रखते है, कौशल रखते हैं. इसलिए आईटी वहां इतना सफल हुआ. आईटी में वो इतने सफल हुए.
... अपने समाज में अलग-अलग कौशल के अलग-अलग लोग हैं. अपन ने ये माना कि राजकाज में राजपूत अच्छा राज चलाते है. क्यों माना हमने ? एक तो वो परंपरा से राज चलाते आ रहे है, दूसरा चीजों के लिए समझौते करना, सब को खुश रखना, इसकी जो समझदारी है, कौशल जो होती है, वो आपको राज चलाते-चलाते आती है. आप अगर अपने परिवार के मुखिया है तो आप जानते हैं कि आपके परिवार के लोगों को किस तरह से हैंडल किया जाये.
...अब धारण शक्ति उन लोगों में होती है, जो शुरू से जो धारण करने की प्रवृत्ति के कारण आगे बढ़ते है. अब आप देखो अपने समाज में, अपनी राजनीति में. अपने यहां सबसे अच्छे राजनेता कौन है ? आप देखोगे जवाहरलाल नेहरू ब्राह्मण, इंदिरा गांधी ब्राह्मण, अटल बिहारी वाजपेयी ब्राह्मण, नरसिंह राव ब्राह्मण, राजीव गांधी ब्राह्मण. क्यों ? क्योंकि सब चीजों को संभालकर चलाना है इसलिए ये समझौता वो समझौता वो सब कर सकते है. बेचारे अटल बिहारी बाजपेयी ने तो इतने समझौते किये कि उनके घुटनों को ऑपरेशन हुआ तो मैंने लिखा कि इतनी बार झुके है कि उनके घुटने खत्म हो गये, इसलिए ऑपेरशन करना पड़ा.
मुझे लगता है प्रभाष जी सही दिशा में सोच रहे हैं , कुछ तर्क और ब्योरे छुट रहे हैं .वैसे कुछ इसी तरह के लेख प्रगतिशील सोच वाली पत्रिकाओं व लेखकों में मिलेंगी. अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए मैं उदयप्रकाश की लम्बी कहानी "पीली छतरी वाली लड़की " के अंश प्रस्तुत कर रहा हूँ ,जो उपर्युक्त अंश के पूरक भी हैं .
....वे अपने -अपने भविष्य के लिए आश्वस्त और बेफिक्र लड़के थे ।विभाग में चलने वाली राजनीति के वे ज्यसतर प्यादे थे । उनकी रूचि साहित्य या किताबों में कम और डिग्री ,नियुक्ति , प्रमोशन ,फेल्लोव्शिप आदि हथियाने के गुर सीखने में ज्यादा थी . वे बहुत तेजी से ये प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे थे .उनकी जैविक आनुवंशिकता में कुछ गुणसूत्र ऐसे थे ,जिससे वे यह विद्या उतनी ही सरलता से सीख रहे थे ,जितनी सर्ताता से गिलहरी पेड़ पर चढ़ना , मछली पानी में तैरना, पनडुब्बी गोते लगाना या मूस किसी दीवार में बिल बनालर घर में घुसना सीखता है. -- पेज ५१
..." इस देश के इतिहास में कोई भी जाति कभी स्थिर नहीं रही है ... लेकिन एक जाति ऐसी है, जिसने अपनी जगह स्टेटिक बनाये रखी है ।विल्कुल स्थिर ,सबसे ऊपर .हजारों सालों से ॥वह जाति है ब्राह्मण . शारीरिक श्रम से मुक्त, दूसरों के परिश्रम, बलिदान, और संघर्ष को भोगने वाली संस्कृति के दुर्लभ प्रतिनिधि. इस जाति ने अपने लिए श्रम से अवकाश का एक ऐसा स्वर्गलोक बनाया ,जिसमे शताब्दियों से रहते हुए इसने भाषा, अंधविश्वासों, षड्यंत्रों, संहिताओं और मिथ्या चेतना के ऐसे मायालोक को जन्म दिया ,जिसके जरिये वह अन्य जातियों की चेतना,उनके जीवन और इस तरह समूचे समाज पर शासन कर सके .
...एक निकम्मे , अकर्मण्य धड़ पर रखा हुआ एक बेहद सक्रिय, शातिर , षड्यंत्रकारी दिमाग, एक ऐसी खोपडी, जिसमे तुम सीधी-सादी कील भी ठोंक दो तो वह स्क्रू या स्प्रिंग बन जायेगी ।
.... they are the greatest and the deadliest power manipulators since centuries! सत्ता को कब्जियाने ,उसे अपने शिकंजे में कस लेनेवाली ऐसी मक्कार बाजीगर जाति समूचे इतिहास में और कहीं नहीं। A well organized nexus of power manipulatars .सम्पति और सत्ता के लिए यह जाति कुछ भी कर सकती है॥ यह इस देश का दुर्भाग्य ही है, की वे हमेशा कामयाब रहे, आज तक !" -पेज 123
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1 comment:
मैं प्रभाष जोशी से पूर्णतया सहमत हूँ ! इसे सिर्फ संकुचित दृष्टिकोण तक ही नहीं देखा जाना चाहिए , खुदा का शुक्र है की देर से ही सही प्रभाष जोशी को वास्तविक ज्ञान की अनुभूती हुई ! ब्राह्मण का मतलब सिर्फ यह नहीं कि वह किसी बह्राह्मन के घर पैदा हुआ हो ! ब्राह्मण का मतलब है अच्छे और ऊँचे कर्म करने वाला !
इसे गलत तौर पर ना ले लेकिन आज जो हम हर ओर नैतिकता और मूल्यों का ह्रास देखते है, वह तभी से बढा है, जब से तुच्छ कर्मो वाले लोग सत्ता पर काबिज हुए ! ये लोग अपने फायदे और बचाव में जो जो मर्जी तर्क दे- दे लेकिन सच्चाई यही है !
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