कुछ दिनों पूर्व काशी हिंदू विश्वविद्यालय में महादेवी वर्मा पर आयोजित एक गोष्ठी मे ,हिंदी साहित्य के आलोचक नंबर १ डाक्टर नामवर सिंह जी ने यह कह कर कि "पंत का चौथाई से ज्यादा काव्य कुडा है " यहाँ के साहित्यिक परिवेश में हलचल मचा दी .एक छुटभैये विद्धान ने यह कह कर बहस को आगे बढाया की " कूडा तो तुलसी के यहाँ भी है '.इन परिस्थितियों मे हिंदी साहित्य के शोधेच्छुओं को शोध के कुछ विषय सुझाना चाहता हूँ :
हिंदी साहित्य में कूडा , प्रगतिशील साहित्य में कूडा , दलित साहित्य में कूडा , हंस पत्रिका में कूडा , हिंदी आलोचना में कूडा इत्यादि
थोडा और आगे बढ़ें तो प्रेमचंद के साहित्य में कूडा , रेणु के साहित्य में कूडा इत्यादि
अन्य भाषाओं में
बांग्ला साहित्य में कूडा , रविन्द्र साहित्य में कूडा , मराठी साहित्य में कूडा इत्यादि
थोडा ज्यादा पीछे चलें तो
कालिदास के साहित्य में कूडा , वाल्मीकि रामायण में कूडा , व्यास रचित महाभारत में कूडा इत्यादि
थोडा और ग्लोबल हो तो
शेक्सपियर के साहित्य मे कूडा ,तोल्स्तोय के साहित्य में कूडा , गोर्की के साहित्य मे कूडा ....
और अंत में
कूडा जो बीनन मैं चला कूडा ना मिल्या कोय
ब्लाग जो लिक्खा आपना पुरा कूडा होय ।
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