शहादत और अतिक्रमण- वंदना राग
अक्सर राजेंद्र यादव की यह शिक़ायत रहती है कि ४७ के विभाजन पर हिंदी साहित्य में (उल्लेखनीय) रचनाएं कम लिखी गई हैं। आज ये स्थिति नही है , उदहारण के लिए कारगिल युद्ध को ही लीजिये ८-९ साल हुए कई कहानियाँ लिखी जा चुकी ,अभी लिखी भी जा रही हैं।शहादत और अतिक्रमण भी करगिल युद्ध कि पृष्ठभूमि पर लिखी एक कहानी है जो हंस मे नही छपी है ।
कहानी मे एक लांस नायक (ठाकुर) अजय प्रताप सिंह हैं उनकी पत्नी मुन्नी (हमेशा सिंह सहित) हैं नायक के माता पिता हैं ये सब लोग गावं मे रहते हैं ,एक कोई सोनाने (नीच जति का यानी लगभग दलित)है जिसकी आँखों मे मुन्नी के लिए इज्जत के अलावा सब कुछ तैरता रहता है । और हाँ नायक के एक भाई-बहन भी हैं।भाई जिसके पढने मे खर्चा हो रहा है, अविवाहित बहन जिसके लिए दहेज़ जुटाया जा रह है । इनकी प्रविष्टि कहानी मे सिर्फ एक बार हुई है फिर ये नही आये हैं जब भाई शहीद हुआ तब भी , एस पी , डी एम् ,विधायक सभी आ गए हैं मगर भाई बहन नही आये हैं ,खैर कहानी मे उनकी जरुरत भी नही है ।
तो कहानी मे स्त्री(+ देह) विमर्श भी ,दलित विमर्श भी आ गया है ,भाषा शैली अच्छी है ही। एक क्रन्तिकारी (सुपर हिट) कहानी के जो जरुरी था , शहीद की विधवा सोनाने के साथ भाग जाती है .
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