Sunday, June 10, 2007

हंस-जून

इस बार के हंस में राजेंद्र-मन्नू जी कि पुत्री रचना यादव का एक लेख प्रकाशित हुआ है .ये लेख हंस मई अंक में रोहिणी अग्रवाल द्वारा मन्नू भंडारी के संस्मरण "एक कहानी यह भी " की समीक्षा की वजह से वाध्य होके लिखा गया है। पढ़ के ये अनुमान लगाया जा सकता है कि किस मनः स्थिति मे इस लिखा गया है . यह एक बहुत ही संतुलित लेख है ,लेखिका की दृष्टि एक पुत्री की वजाय एक आलोचक की रही है ,मैं इस लेख से सौ फीसदी सहमत हूँ .रोहिणी अग्रवाल की समीक्षा का लगभग संचिप्त रूप मृणाल पण्डे द्वारा हिंदुस्तान मे प्रकाशित हुआ है । जिसे पढ़ के शंका उठती है की क्या समीक्षिका द्वारा किटाब को पढा भी गया है या नही। हिंदी साहित्य की घटिया राजनीति का यह एक ज्वलंत उदहारण है।


इस बार की कहानियो में तरसेम गुजराल की कहानी इंट-बजरी पठनीय है .

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